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विश्वकर्मा को हमारे यहां विश्व की सृजन शक्ति का प्रतीक
देवेन्द्रराज सुथार @ बागरा. शिल्प, वास्तुकला, चित्रकला, काष्ठकला, मूर्तिकला जैसी अनेकों कलाओं के जनक भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का आर्किटेक्ट व देव शिल्पी कहा जाता है। हम उन्हें दुनिया के प्रथम आर्किटेक्ट और इंजीनियर भी कह सकते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार देवताओं के लिए भवनों, महलों, रथों व बहुमूल्य आभूषण आदि का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ही करते थे। वाल्मीकि रचित रामायण के अनुसार सोने की लंका का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया था। धर्म ग्रंथों में वर्णन है कि विश्वकर्मा ने सोने की लंका निर्मित करके नल कुबेर को दी थी जो कि रावण का सौतेला भाई था। विश्वकर्मा के कहने पर ही नल कुबेर ने सोने की लंका बाद में रावण को सौंप दी थी।
दूसरा प्रसंग रामसेतु निर्माण के संदर्भ में आता है। रामसेतु का निर्माण मूल रूप से नल नाम के वानर ने किया था। नल शिल्पकला जानता था क्योंकि वह देवताओ के शिल्पी विश्वकर्मा का पुत्र था। अपनी इस अद्भुत कला से उसने समुद्र पर सेतु का निर्माण किया था। महाभारत के अनुसार तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली के नगरों का विध्वंस करने के लिए भगवान महादेव जिस रथ पर सवार हुए थे, उस रथ का निर्माण विश्वकर्मा ने ही किया था। वह रथ सोने का था। उसके दाहिने चक्र में सूर्य और बाएं चक्र में चंद्रमा विराजमान थे। दाहिने चक्र में बारह आरे तथा बाएं चक्र में सोलह आरे लगे थे। श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी के निर्माण की नींव भी भगवान विश्वकर्मा ने ही रखी थी। इन समस्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि भगवान विश्वकर्मा श्रम, साधना, तप-तपस्या, सृजन व निर्माण के अधिष्ठाता है। जिन्होंने मेहनत को मीत बनाकर जीवन उपयोगी यंत्रों का सृजन कर अपनी कुशलता का समग्र परिचय दिया। भगवान विश्वकर्मा मेहनत और श्रम को मानते हुए कर्म में आस्था रखकर आगे बढ़ने वाले समस्त लोगों के लिए आदर्श व प्रेरणापुंज है।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कहा था कि भगवान विश्वकर्मा को हमारे यहां विश्व की सृजन शक्ति का प्रतीक माना गया है। जो भी अपने कौशल्य से किसी वस्तु का निर्माण करता है, सृजन करता है, चाहे वह सिलाई-कढ़ाई हो, सॉफ्टवेयर हो या फिर सैटेलाइट, ये सब भगवान विश्वकर्मा का प्रगटीकरण है। हर हुनरमंद विश्वकर्मा का प्रतीक है। गुलामी के लंबे कालखंड में हुनर को सम्मान देने वाली भावना धीरे-धीरे विस्मृत हो गई। सोच कुछ ऐसी बन गई कि हुनर आधारित कार्यों को छोटा समझा जाने लगा। ये चिंताजनक है कि भारत में 20-24 वर्ष के आयु वर्ग के केवल 5 प्रतिशत लोगों के पास ही औपचारिक व्यावसायिक कौशल है। वास्तविकता यह है कि भारतीय विभिन्न बहुराष्ट्रीय निगमों की ओर रुख कर रहे हैं। यह दर्शाता है कि देश में ज्ञान और प्रतिभा की कोई कमी नहीं है।
हालांकि, समय की मांग युवाओं के कौशल को बढ़ाना है ताकि 21वीं सदी की रोजगार की जरूरतों को प्रौद्योगिकी के साथ पूरा किया जा सके। अतः हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि अकादमिक शिक्षा की तरह हम अपनी नई पीढ़ी को बाजार की मांग के अनुसार उच्च गुणवत्ता वाली कौशल आधारित शिक्षा प्रदान करें। एशिया की आर्थिक महाशक्ति दक्षिण कोरिया ने विकास के मामले में कमाल किया है। वर्ष 1950 तक विकास के स्तर और विकास दर दोनों में दक्षिण कोरिया हमारे मुकाबले कहीं नहीं था, लेकिन आज उसकी गणना भारत से आगे के देशों में होती है और विकास के कुछ पैमानों पर उसने जर्मनी को पीछे छोड़ दिया है। इसमें बड़ी भूमिका कौशल से जुड़ी शिक्षा की है। निश्चित रूप से कौशल विकास को प्रोत्साहन दिए बगैर देश विकसित व आत्मनिर्भर नहीं हो सकता। हमें हुनर को सम्मान देना होगा। हुनरमंद होने के लिए मेहनत करनी होगी। हुनरमंद होने का गर्व होना चाहिए।