बसपा सुप्रीमो मायावती ने कुछ दिन पहले अपने जन्मदिन पर यह एलान किया था कि पार्टी अब अगले चुनाव खुद के दम पर ही लड़ेगी। इस योजना पर अमल करते हुए बसपा के थिंक टैंक का सोचना है के यदि पार्टी तीन मोर्चों पर फोकस कर ले 2024 लोकसभा की राह मुश्किल नहीं रहेगी ।इसके लिए पार्टी द्वारा सभी कोआर्डिनेटरों को उनकी जिम्मेदारियां भी तय की जाएंगी। विधानसभा चुनाव में जब बसपा का काडर वोटर उससे अलग हुआ तो पार्टी सिर्फ एक सीट के जीत पर रह गई। अब बसपा अपना काडर वोट मजबूत करना चाहती है। मायावती चाहती है की वर्ग जाने कि बसपा कमजोर नहीं है। यदि बसपा का ये वर्ग अपनी पूरी ताकत से साथ पार्टी के साथ आया तो 2024 लोकसभा में पार्टी का परिदृश्य बदल जाएगा।
पार्टी का अगला लक्ष्य पसमांदा मुस्लिमों को पार्टी के हक़ में करना है। राज्य में लगभग 18 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं। जिनमे ख़ास तौर पर ऐसी 11 सीटें हैं जहां मुस्लिम निर्णायक हैं। इन सीटों में भी 70 प्रतिशत से ज्यादा संख्या पसमांदा मुस्लिमों जो की पिछड़ी जाति है। और यह पहले भी बसपा के साथ रहे हैं। हाल फिलहाल इनका रुझान भारतीय जनता पार्टी की तरफ है जो बसपा के लिए चिंता का विषय है। बसपा थिंक टैंक का ऐसा सोचना है की विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ जाकर इन्होने अंजाम देख लिया अब अगर यही वोट बैंक बसपा के पास आ जाए तो तस्वीर बदल सकती है। बहुजन समाज पार्टी अपना सबसे बड़ा दांव प्रदेश के पिछड़ा वर्ग पर लगाने जा रही है। राज्य में 50 प्रतिशत से ज्यादा पिछड़ा वर्ग है यह संख्या किसी भी चुनाव का नतीजा तय करती है। वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भी ऐसा ही देखा गया। अगर 2007 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो बहुजन समाज पार्टी ने अति पिछड़ों पर दांव लगाकर सत्ता प्राप्त की थी।