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जालोर : एक साल में जानिए विधायक जी के हाल-चाल … तीन विपरीत सरकार में उलझे तो दो अपनी पार्टी की व्यवस्थाएं सुलझाने में व्यस्त रहे

  • प्रदेश की नई सरकार के विधायकों को एक साल हुआ पूरा, वादों पर नहीं उतर पाए खरे

दिलीप डूडी, जालोर. प्रदेश की नई सरकार के विधायकों को निर्वाचित हुए एक वर्ष पूरा हो चुका है। जालोर जिले (नवगठित सांचौर मय) की पांचों विधानसभा क्षेत्रों में तीन स्थानों पर नए विधायक चुने गए थे, जबकि जालोर व आहोर विधायक रिपीट हो गए थे।

जो नए बने थे उन्होंने नए वादे किए थे और जो रिपीट हुए थे उन्होंने बकाया रहे कार्यों को पूरा करने का वादा किया था, अब एक साल बीत गया है, इस अवधि में कौन क्या कर पाया है। जनता की उम्मीदों पर कौन कितना खरा उतर पाया है। आइए जानते है इनके एक साल की उपलब्धि…

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तीन में आपसी विरोधियों से तकरार

प्रदेश में भाजपा सरकार बनने से सांचौर में निर्दलीय, रानीवाड़ा व भीनमाल में कांग्रेस के विधायकों को सत्तारूढ़ पार्टी के प्रत्याशियों से अंदरूनी मुकाबला झेलना पड़ रहा है। इस कारण जनता के छोटे छोटे कार्य आपसी मतभेद के चलते अटके हुए पड़े हैं। वहीं आहोर व जालोर के विधायक तो जनता के काम के बजाय पार्टी की व्यवस्थाओं में अधिक व्यस्त दिखे। पहले लोकसभा चुनाव में 400 सीट जीतने के चक्कर में व्यस्त हुए तो बाद में हरियाणा व महाराष्ट्र चुनाव और पार्टी के सदस्यता अभियान में व्यस्त हो गए। इस कारण कई छोटे छोटे काम भी नहीं हो पाए।

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सांचौर : जिले की तस्वीर बदलने का वादा करने वाले जीवाराम एक सोनोग्राफी मशीन शुरू नहीं करवा पाए…

सांचौर विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो यहां भाजपा से तत्कालीन सांसद देवजी पटेल, कांग्रेस से तत्कालीन सत्तारूढ़ पार्टी के राज्य मंत्री सुखराम विश्नोई को टिकट देकर मैदान में उतारा था, निर्दलीय के रूप में पहले से दो बार विधायक रहे जीवाराम चौधरी मैदान में उतर गए थे। जीवाराम ने नवगठित जिले की तस्वीर बदलने का वादा किया, समीकरण ऐसे बने कि जीवाराम चौधरी बाजी जीत गए, लेकिन सरकार बदलकर बहुमत के साथ भाजपा की बन गई, अब निर्दलीय के रूप में जीवाराम जो वादे कर पाए थे, वो पूरा नहीं कर पा रहे है, कोई कुछ अपनी व्यथा लेकर जाए भी तो जवाब मिलता है कि मेरी तो सरकार में सुनवाई नहीं है। एक साल के समय में बड़े काम तो दूर की बात है, सांचौर जिला मुख्यालय पर सरकारी अस्पताल में एक सोनोग्राफी मशीन तक विधायक शुरू नहीं करवा पाए हैं। सांचौर अस्पताल में लंबे समय से सोनोग्राफी मशीन बंद पड़ी है। यहां निजी अस्पतालों का ऐसा दबदबा है कि सरकारी संस्थानों में आमजन कोई लाभ ले ही नहीं पा रहा है, बड़ी संख्या में दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले मरीजों को निजी संस्थाओं में मोटी रकम देकर सोनोग्राफी करवानी पड़ती है। सांचौर सीएमएचओ डॉ बाबूलाल विश्नोई का कहना है कि रेडियोलॉजिस्ट की व्यवस्था नहीं हुई है, जिस कारण बंद है। अब स्त्री रोग विशेषज्ञ की नियुक्ति हुई है, मशीन सील है, सर्टिफिकेट लगते ही शुरू कर दी जाएगी। अब इंताजर रहेगा कि विधायक इसके लिए कितने मजबूती से प्रयास करते हैं।

विपक्ष – विपक्ष के रूप में भाजपा प्रत्याशी देवजी पटेल सत्ता सुख भोग रहे हैं, अधिकारियों की नियुक्ति में पूरी दखल रखते है, ऐसे में विधायक न होते हुए भी पहले की तुलना में इनके घर समर्थकों की भीड़ रहती है। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी सुखराम विश्नोई पहले की तुलना में धरना प्रदर्शन तो नहीं कर पा रहे हैं, लेकिन बार बार सांचौर जिला यथावत रहना चाहिए ऐसा कहकर सरकार पर हाथ जोड़कर दबाव जरूर बनाते दिखे हैं।

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रानीवाड़ा : बिजली की पर्याप्त उपलब्धता को तरस रहे किसान

वर्ष 2018 में तत्कालीन विधायक नारायणसिंह देवल लगातार दूसरी बार विधायक बने थे, लेकिन सरकार कांग्रेस की बन गई थी, इस कारण उनका आरोप था कि छोटे छोटे कार्यों को लेकर कांग्रेस प्रत्याशी रतन देवासी रोड़ा अटका देते है, यही वजह रही कि उस समय जसवंतपुरा में मीटिंग को लेकर नारायणसिंह देवल तिलमिलाते हुए एक महिला अधिकारी से अभद्र व्यवहार कर बैठे थे। इस बार केबिनेट मंत्री बनने का ख्वाब लेकर लगातार चौथी बार मैदान में उतरे नारायणसिंह देवल पार्टी की गुटबाजी व सामाजिक समीकरणों में ऐसे उलझे की रिकॉर्ड तोड़ मतों से हार झेलनी पड़ी, खुद तो हार गए लेकिन पार्टी की सरकार बनने के चलते बाजी रह गई। जो हरकत बीते पांच साल हुई वो इस बार इनके हत्थे लग गई। इस कारण यहां विधायक बनने के बाद भी एक साल में रतन देवासी खास उपलब्धि हासिल नहीं कर पाए। पंचायत समिति भवन का कार्य अटकना इन दोनों नेताओं के आपसी विवाद का एक बड़ा उदाहरण है। रानीवाड़ा क्षेत्र डबल क्राफ्ट एरिया है, यहां बिजली की पर्याप्त उपलब्धता नहीं होने से किसानों को भारी समस्या झेलनी पड़ रही है। कर्मचारी आमजन की सुनवाई नहीं कर पा रहे है। टमाटर व मिर्च का रकबा घट रहा है। सब्जियों के स्टोरेज को लेकर विधायक जो कार्य कर सकते है, उन पर देवासी काम नहीं कर पाए हैं। कई स्कूलों में पर्याप्त पेयजल सुविधा का अभाव अभी भी बना हुआ है।

विपक्ष – भाजपा प्रत्याशी नारायणसिंह देवल 2013 की भाजपा सरकार में विधायक थे, लेकिन पहली बार होने के कारण सरकार का हिस्सा नहीं बने थे। इस बार इन्हें बड़ी उम्मीद थी, पर हार गए। इसकी बड़ी ठेस भी लगी है, इस कारण सत्ता में दखल तो पूरी देते है, लेकिन काम पूरा करवाने को लेकर उत्सुक नहीं दिखते।

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भीनमाल: शहर को अब भी नसीब नहीं हो रहा पर्याप्त मीठा पानी

पंद्रह साल बाद नजदीकी मुकाबले में जीते कांग्रेस के डॉ समरजीतसिंह राठौड़ से भीनमालवासियों को बड़ी उम्मीदें है, क्योंकि राठौड़ इससे पहले भी दो बार विधायक रह चुके है और ये पहले कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट करवा चुके हैं, लेकिन इस बार फिर भाजपा सरकार होने के चलते कार्यों में भाजपा प्रत्याशी की दखलंदाजी बनी हुई है। चार बार विधायक रहने के बावजूद पूराराम चौधरी ने हारते ही कर्मचारियों को देख लेने की धमकी दे डाली थी। यही वजह है कि भीनमाल शहर को अभी भी पर्याप्त मीठा पानी नसीब नहीं हो पाया है। यहां विधायक डॉ समरजीत सिंह भी पारिवारिक जिम्मेदारियों में व्यस्त रहने के चलते इस एक साल में जनता की उम्मीदों पर खास खरा नहीं उतर पाए है, देखना होगा आगामी वर्षों में क्या कर पाते हैं।

विपक्ष – लगातार तीन बार विधायक रहने के बाद भी मन नहीं भरा। हार का ठीकरा भी सरकारी कर्मचारियों पर फोड़ा, समय समय पर इसकी खुंदस निकालने का प्रयास करते है, लेकिन जनता के राहत के काम नहीं करवा पाते हैं।

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जालोर : अंतिम बोलकर चुनाव जीत गए, लेकिन स्थिति जस की तस

जालोर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा से जोगेश्वर गर्ग 1990 के बाद से पांचवी बार जालोर के विधायक निर्वाचित हुए हैं। इस बार गर्ग अंतिम चुनाव का बोलकर अच्छे मार्जिन से जीत गए और सरकार में मुख्य सचेतक का ओहदा भी ले लिया लेकिन जालोर की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं देखने को मिल रहा है। स्थिति जस की तस बनी हुई है। बीती कांग्रेस सरकार के स्वीकृत कई कार्य तो अभी तक शुरू भी नहीं हो पाए हैं। खासकर जालोर शहर की स्थिति से तो कौन वाकिफ नहीं है, बारिश के दिनों में तो शहर बदहाली से गुजर रहा था। सरकार को एक साल होने के बाद भी जालोर नगर परिषद में एक स्थायी आयुक्त नहीं लगा पाए हैं। परिषद के आधे से अधिक पद अभी भी रिक्त पड़े हुए हैं। जिससे आमजन के कार्य नहीं हो पाते हैं। गैस पाइपलाइन के लिए खुदाई करने वालों ने सड़कों को तोड़ दिया, जगह जगह गड्ढे कर दिए, सुनने वाला कोई नहीं है। गांवों में गर्मियों के समय में पेयजल समस्या से जूझना पड़ता है तो वर्तमान में सायला जैसे डबल क्राफ्ट एरिया में बिजली की आपूर्ति को लेकर किसान परेशान है, किसानों को समय पर बिजली उपकरण नहीं मिल पा रहे हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। गर्ग जीतने के बाद गर्ग का अधिकांश समय लोकसभा चुनाव, हरियाणा चुनाव, महाराष्ट्र चुनाव व पार्टी सदस्यता में ही बीता है, जालोर विधानसभा क्षेत्र की जनता के हाल तो पहले जैसे ही है। गर्ग को जिताने के किये तत्कालीन गृहमंत्री अमित शाह ने जवाई नदी को पुनर्जीवित करने का वादा तो कर दिया था, लेकिन उसके एक साल बाद तक कुछ नहीं किया। अब किसान धरने पर बैठे है, लेकिन 15 दिन तक कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है।

विपक्ष – स्थानीय स्तर पर आपसी गुटबाजी के चलते रानीवाड़ा से आकर रमिला मेघवाल जालोर की कांग्रेस प्रत्याशी बन गई, लेकिन अब हारने के बाद पार्टी की बैठकों तक सीमित हो गईं। विपक्ष की जो भूमिका निभानी चाहिए वो बतौर लीडर के रूप में कहीं नहीं दिखा पा रही हैं।

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आहोर : सता में काम करने का मौका मिला पर कार्यों की क्वालिटी पर ध्यान नहीं

आहोर विधानसभा क्षेत्र से छगनसिंह राजपुरोहित लगातार दूसरी बार विधायक बनने में कामयाब हुए। इस बार सत्ता में विधायक बनने का भी फायदा मिला है, प्रथम बजट में अन्य विधायकों की तुलना में कार्य भी अधिक लाए हैं, लेकिन क्षेत्र में कार्यो की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देने के कारण विकास कार्यों में घटिया निर्माण कर दिया जाता है। कई स्थानों पर सड़कें बनी है, लेकिन निम्न क्वालिटी की होने के चलते टूटने लग गई है। कई पंचायतों में कार्य धरातल पर गुणवत्तापूर्ण नहीं हुए हैं। आहोर को पूर्व की सरकार ने नगर पालिका तो बना दिया, लेकिन नगरपालिका का रूप नहीं मिला। क्षेत्र में ब्लाइंड मर्डर केस से पर्दा नहीं उठ पाया है। पीड़ितों को न्याय की उम्मीद है लेकिन पूरी नहीं हो रही है। किसानों को बीमा क्लेम नहीं मिल पा रहा है। एमएसपी पर मूंग खरीद की लिमिट विधायक नहीं बढ़वा पा रहे हैं। देखना होगा आगामी एक साल में विधायक अपने कार्य में कितनी तेजी ला पाते हैं।

विपक्ष – सामाजिक समीकरणों में नए चेहरे के नाम पर पुखराज पाराशर जैसे नेताओं की दावेदारी को कमजोर कर सरोज चौधरी ने आहोर से टिकट तो हासिल कर ली थी, लेकिन हार के बाद पार्टी के अंदरूनी गुटबाजी के सदमे से उबर नहीं पाई और न ही एक साल में क्षेत्र में बतौर लीडर के रूप में सक्रियता दिखाई।

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