देवेन्द्रराज सुथार / जालोर. जवाई बांध के पानी को लेकर जालोर के किसानों का आंदोलन सिर्फ पानी की मांग नहीं, बल्कि उनकी हक और जीवन की लड़ाई है। यह लड़ाई उस उपेक्षा और वादाखिलाफी के खिलाफ है, जो सरकारों और नेताओं ने बार-बार की है। किसान जो देश के अन्नदाता हैं, आज अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर उतरने को मजबूर हैं।
जवाई बांध का पानी जालोर के खेतों और लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा है। किसानों का कहना है कि उनका हिस्सा तय नहीं किया जा रहा और यह पानी अन्य जगहों पर भेजा जा रहा है। ऐसे में उनकी खेती और जिंदगी दोनों मुश्किल में पड़ गई है। आंदोलन का सबसे बड़ा कारण यह है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस मुद्दे पर जो वादे किए थे, वे अभी तक पूरे नहीं हुए हैं।
किसानों ने ट्रैक्टरों से रास्ते जाम किए, सड़कों पर प्रदर्शन किया और विधायक के घर और कलेक्ट्रेट का घेराव भी किया। स्कूल के बच्चों और आम लोगों को भी इस आंदोलन की वजह से काफी परेशानी हुई। लेकिन किसानों का कहना है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे और भी बड़े कदम उठाने को मजबूर होंगे, जैसे रेल रोकना।
यह आंदोलन सिर्फ जालोर का मुद्दा नहीं है। यह पूरे देश में किसानों की परेशानियों और उनके अधिकारों की अनदेखी का प्रतीक है। किसान लगातार मेहनत करके देश की भूख मिटाते हैं, लेकिन जब उनके हिस्से का पानी या संसाधन नहीं मिलता, तो उनका आक्रोश जायज है।
सरकार को चाहिए कि वह इस मुद्दे को गंभीरता से ले और किसानों की मांगों पर तुरंत कार्रवाई करें। जवाई बांध का पानी कैसे बंटे, इसे तय करने के लिए एक स्पष्ट और न्यायपूर्ण नीति बनानी चाहिए। सिर्फ वादे करने से समस्याएं हल नहीं होतीं; उनके लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
यह समय है कि सरकार और नेता किसानों की आवाज सुनें और उनके हक का सम्मान करें। यह सिर्फ एक आंदोलन नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत की सच्चाई है, जहां हर व्यक्ति अपनी जरूरत के लिए लड़ने को मजबूर है। किसानों की परेशानी हल करने से न केवल उनकी जिंदगी बेहतर होगी, बल्कि देश की आर्थिक और सामाजिक स्थिरता भी मजबूत होगी।
आखिरकार, पानी हर किसी का हक है और इसे न्यायपूर्वक बांटना सरकार की जिम्मेदारी है। अगर यह अनदेखा किया गया, तो न केवल किसानों का भरोसा टूटेगा, बल्कि समाज में गहरी खाई पैदा होगी। सरकार को जल्द से जल्द समाधान निकालना होगा।