देवेन्द्रराज सुथार / जालोर. सुरेश सौरभ के कहानी संग्रह ‘भीगते सावन’ में निहित ग्यारह कहानियाँ समकालीन समाज, मानवीय रिश्तों और जीवन की जटिलताओं का सजीव चित्रण प्रस्तुत करती हैं। यह संग्रह केवल कथाओं का समूह नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं, समाज के यथार्थ और जीवन के विभिन्न आयामों का संवेदनशील चित्रण है। इन कहानियों में भाषा का सौंदर्य, शिल्प की परिपक्वता और कथ्य की गहराई पाठकों को न केवल सोचने पर मजबूर करती है, बल्कि उन्हें गहरे आत्मविश्लेषण की ओर भी प्रेरित करती है।
इन कहानियों की भाषा में स्थानीयता और सहजता का अद्भुत समन्वय है। लेखक ने भावनाओं को सटीकता से अभिव्यक्त करने के लिए सरल, सजीव और बोधगम्य भाषा का उपयोग किया है। यह भाषा पाठकों को एक ओर जहां पात्रों और उनके संघर्षों के साथ जोड़ती है, वहीं दूसरी ओर कथानक की गहराई में ले जाती है। कई कहानियों में भावुकता और संवेदनशीलता की प्रधानता है, जो पात्रों की मानसिक स्थिति और समाज के बदलते मिजाज को व्यक्त करने में प्रभावी सिद्ध होती है।
कथाओं का शिल्प उत्कृष्ट है, जिसमें सहजता और प्रवाह का अद्भुत संतुलन दिखाई देता है। प्रत्येक कथा का आरंभ पाठकों को एक अलग दुनिया में ले जाता है और उनका अंत न केवल कथा को समापन देता है, बल्कि पाठकों के मन में कई सवाल और चिंतन के बीज भी छोड़ जाता है। लेखक ने प्रतीकात्मकता का कुशल प्रयोग किया है, जो कहानियों को यथार्थवादी बनाते हुए भी उन्हें दार्शनिक और गूढ़ अर्थ प्रदान करता है।
कथ्य की दृष्टि से ये कहानियाँ गहरी सामाजिक और मानवीय मुद्दों को उजागर करती हैं। “एक था ठठेरा” में पारंपरिक कारीगरी के महत्व और औद्योगिकीकरण की चुनौतियों का मार्मिक चित्रण है। यह कहानी कला और अनुभव की अपरिहार्यता को रेखांकित करती है। “विश्वास लौट आया” आधुनिक जीवन की व्यस्तता और पारिवारिक संबंधों की उपेक्षा के बीच का द्वंद्व प्रस्तुत करती है। यह कथा मानवीय संबंधों की प्राथमिकता को रेखांकित करती है, जो भौतिक सफलता से अधिक महत्वपूर्ण है।
“भीगते सावन” और “औलाद के आँसू” जैसी कहानियाँ मानवीय संवेदनाओं, पारिवारिक रिश्तों और भावनात्मक उलझनों को गहराई से प्रस्तुत करती हैं। “भीगते सावन” में वर्षा का रूप केवल बाहरी दृश्य नहीं, बल्कि आंतरिक भावनाओं का प्रतीक है। इसी तरह “औलाद के आँसू” रिश्तों में विश्वास की अहमियत और झूठ के परिणामों को प्रभावी ढंग से दर्शाती है। “रैली” और “आतंकी” जैसी कहानियाँ समकालीन समाज की विडंबनाओं, राजनीति की स्वार्थपरता और आतंकवाद के दुष्प्रभावों को उजागर करती हैं। “रैली” में आदिवासी समुदाय के शोषण और उनके भोलेपन का चित्रण है, जो राजनीति की अवसरवादी प्रवृत्ति को बेनकाब करता है। वहीं, “आतंकी” आतंकवाद के कारण बच्चों के जीवन में आने वाली त्रासदी और मानवीय मूल्यों के ह्रास की ओर ध्यान आकर्षित करती है। “प्रकाश चला गया” और “पटाक्षेप” जैसी कहानियाँ समाज और व्यवस्था की क्रूरता को उजागर करती हैं। ये कहानियाँ पुलिस, प्रशासन और समाज के उन पहलुओं को सामने लाती हैं, जो एक आम व्यक्ति के जीवन को असहनीय बना देते हैं।
इन कहानियों को पढ़ने की आवश्यकता इसलिए है कि ये पाठकों को अपने आसपास की वास्तविकताओं से रूबरू कराती हैं। ये केवल मनोरंजन या भावुकता के लिए नहीं लिखी गई हैं, बल्कि समाज और व्यक्तित्व के गहरे पहलुओं पर सोचने को प्रेरित करती हैं। इन कहानियों में निहित संवेदनाएँ, पात्रों की दुविधाएँ और सामाजिक समस्याओं की प्रस्तुति हमें यह समझने का अवसर देती है कि जीवन केवल भौतिक उपलब्धियों का नाम नहीं, बल्कि रिश्तों, संवेदनाओं और मानवीय मूल्यों की प्राथमिकता है।
सुरेश सौरभ की कहानियाँ मानवीय दृष्टिकोण से अद्वितीय हैं। ये कहानियाँ हमें एक बेहतर समाज की ओर देखने का दृष्टिकोण प्रदान करती हैं। इनकी भाषा, शिल्प और कथ्य न केवल प्रभावी हैं, बल्कि पाठकों के मन में एक स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं। इस संग्रह को पढ़ना इसलिए जरूरी है क्योंकि यह हमारे समय और समाज के दर्पण के समान है, जो हमें हमारी जिम्मेदारियों और मानवीय मूल्यों की याद दिलाता है।