- करीब तीस सालों से नहीं है चाय की स्टॉल
दिलीप डूडी, जालोर. यूं तो चाय भी नशे की श्रेणी में मानी जाती है, लेकिन हर घर में सुबह चाय के साथ ही होती है, ऐसा देखा गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं बताते है कि वे छोटी उम्र में चाय बेचते थे, वहीं धनाढ्य बिल गेट्स ने भी पिछले वर्ष भारत में एक चाय की स्टॉल पर उपस्थिति देकर सबको चौंकाया था। अंग्रेजी चाय न केवल भारत में सबसे ज्यादा पेय पदार्थ के रूप में उपयोग होती है बल्कि घर आए हुए मेहमान को सबसे पहले चाय की ही मनुहार की जाती है। नशे की श्रेणी में मानी जाने वाली यह चाय ही है जो पिता-पुत्र और मां-बेटी एक साथ बैठकर भी पीती है।
हर घर में चाय घर कर गई है। यही वजह है कि छोटे से छोटे गांवों में भी चाय की स्टॉल आपको आसानी से मिल जाएगी, लेकिन जालोर जिले का एक ऐसा भी गांव है जहाँ पिछले करीब तीस साल से चाय की एक भी स्टाल नहीं है। इसके पीछे कारण भी बड़ा है, वो गांव है जालोर जिले के सायला उपखंड का रेवतड़ा गांव। इस गांव की आबादी वर्तमान में करीब दस हजार से अधिक की है, गांव में डेढ़ हजार से अधिक घर है, लेकिन पूरे गांव में चाय की एक भी स्टॉल नहीं है।
विवाद नहीं पनपे इसलिए चाय की स्टॉल पर लगाई पाबन्दी
गांव के कुछ लोगों से बातचीत की तो सामने आया कि रेवतड़ा में चाय की होटलें हुआ करती थी, लेकिन करीब तीस साल पहले कोई छोटा सा विवाद हुआ था, जगह चाय की होटल थी। वह मामला पुलिस तक पहुंच गया था। मामले ने इतना तूल पकड़ा कि दो पक्ष आमने सामने हो गए थे। इस प्रकार के विवाद की पुनरावृत्ति न हो इसे देखते हुए गांव के मौजिज लोगों ने रेवतड़ा में चाय की जो स्टॉल थी, उन्हें भी बंद करवाया गया। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि उस दौरान प्लेग नामक एक बीमारी आई थी, लोग अक्सर चाय की होटलों पर समूह के रूप में बैठ जाते थे। बीमारी से बचाव के लिए समूह में बैठने से रोकने के लिए चाय की स्टॉल को बंद करवाया गया था। लोगों का मानना था कि चाय की स्टॉल पर समूह के रूप में लोग लंबे समय तक बैठे रहते हैं और छोटी छोटी बातों पर बहस करने लगते हैं, बाद में बहस कभी बड़े विवाद का भी कारण बनती है। इसलिए चाय की स्टॉल लगाना ही बंद किया गया। गांव के सामूहिक निर्णय का हर किसी ने साथ दिया, उसके बाद चाय की होटल रेवतड़ा में किसी ने शुरू नहीं की।
पीने वाले पर रखा बड़ा जुर्माना
बताया जाता है कि इस निर्णय का सभी ने स्वागत किया, लेकिन कुछ पाबंदियां भी रखी गई कि कोई गांव का व्यक्ति चाय की स्टॉल शुरू करेगा तो 5 हजार का जुर्माना लगेगा, वहीं उस स्टॉल पर चाय पीने वाले पर 11 हजार का जुर्माना लगेगा। ताकि कोई बाहरी व्यक्ति भी यहां चाय की स्टॉल शुरू न करे। गांव के लोगों ने मिलकर इस निर्णय का अब तक साथ दिया है। गांव में अब कोई जाता है तो स्टॉल के बजाय उसे किसी घर की चाय ही पीने को मिलती है।
कई मामलों में प्रसिद्ध है रेवतड़ा
रेवतड़ा गांव की गिनती जालोर जिले के बड़े कस्बों में होती है। यहां के कई बड़े बिजनेसमैन भी है। जीवनभर जनसेवा के लिए संघर्ष कर 2008 में जालोर के विधायक बने रामलाल मेघवाल भी रेवतड़ा के निवासी है। करीब 30 प्रतिशत एससी व 6 प्रतिशत एसटी आबादी वाले इस रेवतड़ा गांव की साक्षरता दर (53.31) राजस्थान के औसत से बेहद कम है। इसे देखते हुए हाल ही में व्यवसायी समूह ने गांव में अत्याधुनिक सुविधाओं युक्त एक सरकारी स्कूल बनाई है। अब जीएसआई का सर्वे चल रहा है, यहां खास खनिज या धातु मिलने की भी संभावनाएं है।
इनका कहना है…
करीब तीस साल पहले कोई प्लेग नामक बीमारी आई थी, उस दौरान लोग चाय की स्टॉल पर समूह के रूप में बैठते थे, बीमारी से बचाव के लिए समूह में बैठना बंद करवाने के लिए चाय की स्टॉल बंद करवाई। साथ ही पाबन्दी के लिए कुछ जुर्माने का प्रावधान गांव के मौजिज लोगों ने रखा था, उसके बाद किसी ने चाय की स्टॉल शुरू नहीं की, लेकिन आने वाले समय में रेवतड़ा का विकास होने वाला है, जीएसआई के सर्वे में खास धातु मिलने के संकेत मिले हैं।
-रामलाल मेघवाल, पूर्व विधायक व भाजपा नेता जालोर
चाय की होटलों पर समूह में बैठकर बहस करना और फिर विवाद बनना, इसे देखते हुए ही रेवतड़ा में चाय की होटलें बंद करवाई थी। गांव के मौजिज लोगों का सामूहिक निर्णय था, उसके बाद किसी ने चाय की स्टॉल की जरूरत ही महसूस नहीं की।
-जेठूसिंह राजपुरोहित, भाजपा नेता