🪔 देवेन्द्रराज सुथार / जालोर. दिवाली केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं का प्रतीक है। यह प्रकाश, प्रेम और समर्पण का त्योहार है, जो हमें अपने जीवन में अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का संदेश देता है। हालांकि, आधुनिक समय में इस पर्व का स्वरूप काफी बदल गया है। पटाखों की बड़ती होड़ और भौतिकवादी दृष्टिकोण ने इस त्योहार की सादगी और आध्यात्मिक महत्त्व को धूमिल कर दिया है।
दीपों का महत्व
Bदीप जलाना एक पुरानी परंपरा है जो न केवल अंधकार को दूर करता है, बल्कि यह हमारे घरों में शांति और समृद्धि भी लाता है। दीयों की रोशनी हमारे अंदर सकारात्मकता और आशा का संचार करती है। यह जीवन के अच्छे और बुरे पहलुओं के बीच संतुलन बनाने का एक साधन है। जब हम अपने घरों में दीप जलाते हैं, तो हम एक संदेश देते हैं कि हम अज्ञानता और अंधकार को दूर करके ज्ञान और प्रकाश की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
पर्यावरणीय प्रभाव
पटाखों का बढ़ता प्रचलन न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी गंभीर खतरा है। पटाखों से उत्पन्न धुआं और प्रदूषण वायु की गुणवत्ता को प्रभावित करता है, जिससे सांस लेने में कठिनाई होती है, खासकर उन लोगों के लिए जो पहले से ही श्वास संबंधी बीमारियों से पीड़ित हैं। इसके विपरीत, दीयों का प्रयोग प्राकृतिक और पर्यावरण के अनुकूल है, जो न केवल हमारे लिए बल्कि हमारे चारों ओर के पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है।
सांस्कृतिक पुनरावृत्ति
हमारे त्योहारों की सच्ची महत्ता को समझने की आवश्यकता है। दीयों के साथ मनाए जाने वाले त्योहार हमें अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ते हैं। यह न केवल पारिवारिक बंधनों को मजबूत करता है, बल्कि हमें अपने समुदाय के अन्य लोगों के साथ संबंध स्थापित करने का अवसर भी प्रदान करता है। पटाखों के शोरगुल में, यह सामूहिकता का अनुभव खो जाता है। जब हम एक-दूसरे के घर जाकर दीयों का आदान-प्रदान करते हैं, तो यह हमारे बीच प्रेम और एकता का एक मजबूत बंधन बनाता है।
आध्यात्मिकता का महत्व
दीयों की जलती लौ एक आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है। यह ध्यान और प्रार्थना के समय हमारे मन को शांति और एकाग्रता प्रदान करती है। जब हम दीये जलाते हैं, तो यह हमारे लिए अवसर होता है कि हम अपने भीतर की आवाज को सुनें और अपने जीवन के उद्देश्य को समझें। पटाखों का शोर इस अनुभव को धूमिल कर देता है।
समाज में जागरूकता फैलाना
यह आवश्यक है कि हम अपने समाज में दीयों की महत्ता और पटाखों के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाएं। इसके अलावा हमें अपने दोस्तों और परिवारों को भी यह समझाना चाहिए कि दीयों के प्रकाश में मनाई गई दिवाली न केवल सुरक्षित है, बल्कि यह हमारे संस्कृति का सच्चा प्रतीक है। संस्कृति का संरक्षण केवल परंपराओं को बनाए रखना नहीं है, बल्कि इसे और भी प्रासंगिक बनाना है। यह समय है कि हम पटाखों से दूर जाकर दीयों की रोशनी को अपनाएं और दिवाली को उसकी वास्तविक सादगी और सौहार्द्र के साथ मनाएं।