जालोर. श्री भाण्डवपुर महातीर्थ में तत्त्वत्रयी प्रतिष्ठोत्सव का आयोजन पुण्य-सम्राट जयन्तसेनसूरीश्वर के पट्टधरद्वय गच्छाधिपति नित्यसेनसूरीश्वर एवं भाण्डवपुर तीर्थोद्धारक आचार्यदेव जयरत्नसूरीश्वर आदि विशाल श्रमण-श्रमणिवृन्द की शुभ निश्रा में विविध धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजनों के साथ दिनांक 5 फरवरी से 20 फरवरी 2024 तक आयोजित किया जा रहा है।
मीडिया प्रभारी कुलदीप प्रियदर्शी ने जानकारी देते हुए बताया कि गच्छाधिपति नित्यसेनसूरीश्वर महाराज, भाण्डवपुर तीर्थोद्धारक आचार्यदेव जयरत्नसूरीश्वर महाराज, विमलगच्छाधिपति आचार्य प्रद्युम्नविमलसूरीश्वर महाराज, आचार्य नरेन्द्रसूरीश्वर महाराज आदि विशाल श्रमण-श्रमणिवृन्द की शुभनिश्रा में चतुर्विध संघ के साथ भव्य शोभायात्रा के द्वारा तीर्थ परिसर में निर्मित प्रातः पुण्य-सम्राट गुरुदेव के 70 वें संयम दिवस के उपलक्ष्य में मधुकर जीवन दर्शन मण्डपम् के लाभार्थी रणसुख जयन्तसेन कृपा वाटिका-पाँथेड़ी ने, रत्नत्रयी मण्डपम् के लाभार्थी रमेशभाई कीर्तिलाल देसाई-थराद-अहमदाबाद एवं साधना स्थली गुफा प्रदर्शनी का उद्घाटन मुमुक्षु भव्याकुमारी अदाणी, निमाबेन देसाई, रविनाकुमारी सोलंकी ने किया |
यहाँ से बाजते-गाजते क्षत्रियकुण्ड नगरी पधारे जहाँ पुण्य-सम्राट जयन्तसेनसूरीश्वर महाराज के 70 वें संयम पर्याय दिवस पर गुणानुवाद सभा का आयोजन किया गया। गुणानुवाद सभा में गच्छाधिपति ने पुण्य-सम्राट के गुणों का वर्णन करते हुए बताया कि वे संसार की माया को छोड़ कर संयम मार्ग पर अग्रसर हुए और समग्र संसार में अपने गुरु श्री यतीन्द्रसूरि महािराज के आशीर्वाद से जिनशासन के अनेक कार्य सम्पादित किए, वह समग्र जैन समाज ही नहीं अपितु इतरजनों में भी पूजनीय थे।
आचार्यश्री नरेन्द्रसूरि महाराज ने कहा कि हमारे जीवन में तीन बातें- श्रवण, मनन और आचरण आ जाये तो जीवन में चारित्र आ जायेगा और अपना आत्मकल्याण हो जायेगा।पुण्य-सम्राट वाणी के जादूगर थे और उनकी वाणी सुनकर आने वाला पानी-पानी हो जाता था |
कार्यदक्ष मुनिराज आनन्दविजय महाराज ने गुणानुवाद करते हुए कहा कि गुरु के चरणों को स्वीकार कर उनके भावों और उपदेशों को आत्मसात करें। हमारी गुरु को सच्ची श्रद्धांजलि तभी मानी जाएगी कि हम उनके उपदेशों को आगे प्रसारित करें। उनकी गच्छ के प्रति श्रद्धा थी, भक्ति थी और हमको उसे गतिशील एवं गतिमान करना है।
मुनिराज निपुणरत्नविजय महाराज ने कहा कि जो अपने गुरु की महिमा बढ़ाता है उसकी महिमा अपने आप बढ़ जाती है, पुण्य-सम्राट के जीवन में यह बात स्पष्ट रूप से मिलती है। मुनिराज जिनागमरत्नविजय महाराज ने बताया कि पुण्य-सम्राट ने अन्तिम समय में इस पुण्य भूमि पर एक ही हितशिक्षा दी थी सभी स्वाध्याय करना। उन्होंने स्वयं भी किया और अन्तिम समय में यही उपदेश भी दिया। गुरु आज्ञा का पालन करना और गुरु की मान्यता थी इसीलिए पूनमचन्द से पुण्य-सम्राट बनें। मुनि संयमरत्नविजय ने काव्य के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित की।
गुणानुवाद के पश्चात् पंचकल्याणक महोत्सव के नवें दिन दिनांक 13 फरवरी 2024 को तीर्थ परिसर में प्रतिष्ठा निमित्त भगवान की सगाई का कार्यक्रम हुआ। जिसमें सौधर्म इन्द्र-इन्द्राणी ने पुण्य-सम्राट को माल्यार्पण एवं वासक्षेप पूजा कर गच्छाधिपति एवं आचार्यदेव जयरत्नसूरि महाराज का आशीर्वाद लिया। प्रभु के सास-ससुर बनने का लाभ गेबचन्द हरकचन्द गुलेच्छा-जीवाणा ने एवं मामेरा में मामा-मामी बनने का लाभ हंजारीमल कुन्दनमल अनाजी संकलेचा-मेंगलवा ने लिया। आज तीर्थ में दर्शन-वन्दन एवं प्रतिष्ठोत्सव अवलोकन करने जालोर कलेक्टर निशान्त जैन पधारे। जिनका बहुमान राज दरबार में किया गया।
श्री महावीर जैन श्वेताम्बर पेढ़ी (ट्रस्ट), श्री वर्धमान-राजेन्द्र जैन भाग्योदय ट्रस्ट (संघ), श्री तत्त्वत्रयी प्रतिष्ठा महोत्सव समिति के द्वारा सम्पादित होने वाले प्रतिष्ठोत्सव में नवस्मरण का जाप मंगल घर, श्री महावीर मन्दिर, गुरु मन्दिर एवं दोनों समाधि मन्दिर में प्रतिदिन तीन बार हो रहा है और विभिन्न प्रान्मों से पधारे जापकर्ता श्रावक-श्राविका आयम्बिल, एकासना, भूसन्थारा करने के साथ ही वर्षीतप की तपस्या करते हुए पौषध में कर रहे हैं | अ. भा. श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद् परिवार भी अपनी सेवाएँ प्रदान कर रहा है |
दोपहर में क्रिया मण्डपम् में सुप्रसिद्ध विधिकारक श्री सत्यविजयजी हरण, विरलभाई, त्रिलोकजी काँकरिया आदि के मन्त्रोच्चार के साथ श्री शान्तिनाथ पंचकल्याणक पूजा पृथ्वीराज दूदमल निमाणी-पोषाणा द्वारा संगीत की मधुर स्वरलहरियों के साथ पढ़ाई गई |
प्रातः की नवकारसी कानराज फूलचन्द बन्दामुथा-पाँथेड़ी की ओर से, दोपहर की नवकारसी भबूतमल गोमाजी गुलेच्छा-जीवाणा की ओर से एवं सायं की नवकारसी सोनमल प्रागाजी संकलेचा-मेंगलवा की ओर से हुई। सायं गजराज पर बैठकर सकल श्रीसंघ के साथ कुमारपाल महाराजा की आरती करने का लाभ मोहनदेवी रिखबचन्द छत्रियावोरा-सुराणा ने लिया ।
आयोजन में प्रभावना दिनेशकुमार मेघराज छत्रियावोरा-सुराणा, परमात्मा एवं गुरु प्रतिमाओं की नयनाभिराम अंगरचना शान्तिलाल मुनीलाल संघवी-आलासन एवं प्रभु भक्ति एवं रोशनी कुन्दनमल भोलाजी नाहर-साँथू की ओर से की गई।