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ईमानदारी की मिसाल अधिकारी… 32 साल की सेवा में 37 बार चुनाव पर्यवेक्षक बनकर IAS डॉ. राजू नारायण स्वामी ने बनाया रिकॉर्ड, इस बार जालोर-आहोर के पर्यवेक्षक की निभाई भूमिका

दिलीप डूडी, जालोर. चुनाव नेताओं के साथ साथ अधिकारियों के जीवन में भी अहम भूमिका निभाते हैं। नेता जहां हार जीत की गणित देखते है, वहीं अधिकारी उसे निष्पक्षता और पारदर्शिता के साथ सम्पन्न होने को बड़ी सफलता मानते हैं।

आईएएस डॉ राजू नारायण स्वामी

आइए बताते हैं एक ऐसे अधिकारी के बारे में जिसने अपनी सरकारी सेवा से अधिक समय चुनाव सम्पन्न कराने में ही बीता दिया। करीब 32 साल की सरकारी सेवा में 37 बार चुनाव में पर्यवेक्षक बनकर पारदर्शिता व निष्पक्षतापूर्ण चुनाव सम्पन्न कराने में अपनी भूमिका निभाई। हम बात कर रहे है केरल राज्य के वर्तमान में विधानसभा के प्रधान सचिव आईएएस डॉ राजू नारायण स्वामी की, जो हाल ही में 2023 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में जालोर-आहोर विधानसभा क्षेत्र के सामान्य पर्यवेक्षक बनकर आए थे और शांतिपूर्ण चुनाव सम्पन्न करवाकर गए थे। डॉ स्वामी का यह चुनाव पर्यवेक्षक के रूप में रिकॉर्ड 37 वां मौका था। देश के 17 राज्यों में चुनाव कराने का भी अनुभव प्राप्त कर चुके हैं। एक आईएएस अधिकारी के लिए यह रिकॉर्डतोड़ चुनावी अनुभव है।

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अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक भी रह चुके आईएएस डॉ स्वामी

केरल कैडर के आईएएस डॉ स्वामी देश के अलग अलग राज्यों में चुनाव सम्पन्न करा चुके है। राजस्थान 17 वां राज्य रहा है। इससे पहले दक्षिण बंगलुरू में पर्यवेक्षक की ड्यूटी कर चुके है।इसके अलावा झारखंड जैसे नक्सल प्रभावित क्षेत्र और देश के सीमावर्ती क्षेत्र में भी चुनाव कराए थे। वर्ष 2012 के यूपी चुनाव में वे कानपुर मंडल के रोल ऑब्जर्वर थे और छह जिलों के प्रभारी थे। इसके अलावा 2018 में जिम्बाब्वे चुनावों में अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षक भी रह चुके है।

1991 बेच के टॉपर आईएएस है डॉ स्वामी

डॉ राजू नारायण स्वामी 1991 बैच के अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रथम रैंक धारक हैं। इन्हें साइबर हब में नई पहल करने के लिए भी जाना जाता है।

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कई पुस्तकें लिखकर इनाम जीत चुके स्वामी

आईएएस डॉ स्वामी लोक सेवक के साथ साथ लेखक भी है। जीवनकाल में 32 किताबें लिख चुके हैं और अपने यात्रा वृतांत “शांतिमंत्रम मुजंगुन्ना थज़वारयिल” के लिए इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला हुआ है। इन्होंने 2021 में बौद्धिक संपदा कानून में अपनी छात्रवृत्ति के लिए जॉर्ज मेसन यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी एंड इनोवेशन पॉलिसी द्वारा स्थापित प्रशंसित लियोनार्डो दा विंची फ़ेलोशिप भी जीती।

भ्रष्टाचार विरोधी योद्धा की पहचान है डॉ स्वामी

केरल के भ्रष्टाचार विरोधी योद्धा के रूप में लोकप्रिय स्वामी को मानवीय मूल्यों को बनाए रखने में उनकी पेशेवर ईमानदारी के लिए आईआईटी कानपुर द्वारा 2018 में सत्येन्द्र के. दुबे मेमोरियल अवार्ड से सम्मानित किया गया। उन्होंने प्रतिष्ठित होमी भाभा फ़ेलोशिप (साइबर कानून में) भी जीता। कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग में आईआईटी मद्रास से बी.टेक और गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी से कानून में पीएचडी करने वाले स्वामी के पास नेशनल लॉ स्कूल, बंगलुरू से पीजी डिप्लोमा और साथ ही एनएलयू दिल्ली से एलएलएम की डिग्री है, इन दोनों में इनको स्वर्ण पदक मिला हुआ है।

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डॉ स्वामी का 30 बार हो चुका तबादला

1968 में केरल में एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे स्वामी एक शैक्षणिक माहौल में बड़े हुए और उनके माता-पिता दोनों प्रोफेसर थे। घर पर प्रेरणा की कोई कमी नहीं होने और शिक्षाविदों में बढ़ती रुचि के कारण उन्होंने अपने पूरे स्कूल के दिनों में पढ़ाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और कई उपलब्धियां प्राप्त की। वह एसएसएलसी (1983) में केरल राज्य में प्रथम और प्री-डिग्री (1985) में विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान पर रहे। 1989 में उन्होंने बी.टेक. की उपाधि प्राप्त की। आईआईटी मद्रास से कंप्यूटर साइंस में प्रथम स्थान प्राप्त किया। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) से पूरी छात्रवृत्ति के बावजूद, उन्होंने सिविल सेवा में अपना करियर बनाने का फैसला किया। उन्होंने अपने दो पसंदीदा विषयों गणित और भौतिकी को चुना। उन्होंने 1990 में सिविल सेवा परीक्षा में अखिल भारतीय स्तर पर प्रथम रैंक हासिल की और केरल कैडर में शामिल हो गए।

अपने प्रशासनिक करियर में उन्होंने पांच जिलों के जिला कलेक्टर, कृषि उत्पादन आयुक्त और प्रमुख सचिव (कृषि), केरल सरकार सहित कई प्रमुख विभाग संभाले हैं। मत्स्य पालन और कॉलेजिएट शिक्षा निदेशक; मार्केटिंग फेडरेशन के प्रबंध निदेशक; और नागरिक आपूर्ति विभाग में आयुक्त। वह भारत सरकार के नारियल विकास बोर्ड के अध्यक्ष भी थे। वह एक चुनाव विशेषज्ञ भी हैं, जिन्हें 2018 जिम्बाब्वे चुनावों के लिए एक अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक होने के अलावा देश भर के 17 राज्यों में 37 चुनावों के लिए प्रतिनियुक्त किया गया है। भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने अडिग रुख के कारण उन्हें नौकरशाहों और राजनेताओं का गुस्सा झेलना पड़ा। अपनी 32 साल की सेवा में उन्हें 30 तबादलों का सामना करना पड़ा है। उनके भ्रष्टाचार विरोधी अभियानों ने उन्हें कई पुरस्कार दिलाए हैं, उदाहरण के लिए, उन्हें लखनऊ स्थित नागरिक समाज इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च एंड डॉक्यूमेंटेशन इन सोशल साइंसेज (आईआरडीएस) से चौथे आईआरडीएस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। डॉ स्वामी का करियर तबादलों की कठिनाइयों भरा रहा। इसके बावजूद लेखन की रुचि के कारण 32 पुस्तकें लिखी और पुरस्कार पाए।

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