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जालोर में समाज सुधारक मां सावित्रीबाई फुले की जयंती पर किए पुष्प अर्पित

जालोर. हिंदू युवा संगठन संस्था की ओर से जिला मुख्यालय स्थित मां सावित्रीबाई फुले छात्रावास में मां सावित्रीबाई फुले की जन्म जयंती पर पुष्पांजलि व संगोष्ठी कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

नगर अध्यक्ष हेमेंद्र सिंह बगड़िया ने बताया कि हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी हिंदू युवा संगठन संस्था की ओर से मन सावित्रीबाई फुले की जयंती पर पुष्पांजलि व संगोष्ठी कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि की नाते नगर परिषद पार्षद दिनेश महावर उपस्थित थे। वहीं अध्यक्षता संस्थापक अध्यक्ष एडवोकेट सुरेश सोलंकी ने की।विशिष्ठ अतिथि की नाते डॉ.अमन देवेंद्र मेहता,रतन सुथार,अचलसिंह परिहार,दिलीप भट्ट,उर्मिला दर्जी उपस्थित थे।

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संस्थापक अध्यक्ष एडवोकेट सुरेश सोलंकी ने कहा कि सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। इनके पिता का नाम खन्दोजी नैवेसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। सावित्रीबाई फुले का विवाह 1841 में ज्योतिराव फुले से हुआ था।सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थीं। महात्मा ज्योतिराव को महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में माना जाता है। उनको महिलाओं और दलित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है। ज्योतिराव, जो बाद में ज्योतिबा के नाम से जाने गए सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक थे। सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। वे एक कवियत्री भी थीं, उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था।

पार्षद दिनेश महावर ने बताया कि वे स्कूल जाती थीं, तो विरोधी लोग उनपर पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 191 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था तब ऐसा होता था।सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फेंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं।

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युवा समाजसेवी अमन देवेंद्र मेहता ने बताया कि 10 मार्च 1897 को प्लेग के कारण सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया। प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीजों की सेवा करती थीं। एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी छूत लग गया। और इसी कारण से उनकी मृत्यु हुई।साथ उपस्थित छात्राओं से माँ सावित्री बाई फुले की जीवनी से सम्बंधित प्रश्नोत्तरी के माध्यम से जानकारी दी। कार्यक्रम में नगर महामंत्री योगेश खत्री, मनीषा कुमारी,निरमा कुमारी,तारा, चन्द्र कंवर, गुड़िया,पुनम, प्राची, कंचन उपस्थित थे।

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