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Book Review – गुलाबी गलियां : अंधेरे में रखे गए किरदारों की साहसिक खोज

देवेन्द्रराज सुथार / जालोर. वरिष्ठ साहित्यकार सुरेश सौरभ द्वारा संपादित ‘गुलाबी गलियां’ देशभर के 63 लघुकथाकारों की लघुकथाओं का एक विचारोत्तेजक और भावनात्मक रूप से प्रेरित लघुकथा संग्रह है, जो वेश्याओं के मार्मिक जीवन पर प्रकाश डालता है। हाशिये पर रहने वाले समुदाय के भीतर मौजूद संघर्ष, करुणा और मानवता पर व्यापकता से यह संग्रह प्रदान विमर्श की वकालत करता है। यह संकलन रूढ़ियों और घिसी-पिटी बातों को दूर करते हुए वेश्याओं के पेशे की जटिलताओं को मार्मिकता एवं कुशलता से प्रस्तुत करता है। सभी लघुकथाएं संवेदनशील काल्पनिक गुलाबी गलियों पर आधारित हैं, ऐसी गलियां जहां के जीवंत रंग उस अंधेरे को दर्शाते हैं, जो अक्सर यहां के निवासियों के जीवन में काले साये की तरह छाये रहते हैं।
प्रत्येक लघुकथा का कथानक एक अनोखा परिप्रेक्ष्य है, जो उन व्यक्तियों को मानवीय बनाता है, जिन्होंने ऐसा जीवन चुना है, या मजबूरन ऐसा जीवन जीया है, जिसे समाज अक्सर निर्दयता से आंकता है एवं हेय दृष्टि से देखता है। संकलन में जो बात सबसे अधिक उभरकर सामने आती है, वह है प्रस्तुत की गईं लघुकथाओं की विविधता। लघुकथाकार संवेदनशील विषयवस्तु को कुशलतापूर्वक नेविगेट करते हैं, इसे अनुग्रह और सहानुभूति के साथ संभालते हैं, यह सुनिश्चित करते हैं कि प्रत्येक चरित्र की आवाज शोषण या सनसनीखेज के बिना सुनी जाए। संकलन की ताकत पूर्वकल्पित धारणाओं को चुनौती देने और आत्मनिरीक्षण को प्रेरित करने की क्षमता में निहित है। यह पाठकों को अपने स्वयं के पूर्वाग्रहों का सामना करने और सामाजिक मानदंडों पर सवाल उठाने के लिए मजबूर करता है, जो अक्सर यौन कार्य से जुड़े कलंक को कायम रखने में योगदान करते हैं।

हालांकि, कुछ कहानियां पचाने में भावनात्मक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं, लेकिन लचीलापन और मानवता का व्यापक विषय प्रबल है। पूरे संकलन में लेखन विचारोत्तेजक और गहन है। गंभीरता और रोचकता का एक साथ अद्भुत निर्वाह कहानियों के बीच एक सहज परिवर्तन की अनुमति देता है, जिससे पाठक का जुड़ाव शुरू से अंत तक बना रहता है। इस संकलन के जरिए पाठक सुकेश साहनी, कमलेश भारतीय, राम मूरत ‘राही’, कांता रॉय, राजेंद्र वर्मा, मनोरमा पंत, अरविंद असर, डॉ. पूनम आनंद, मीरा जैन, ज्ञानदेव मुकेश, नीना मंदिलवार, रमाकांत चौधरी, डॉ. रामकुमार घोटड़ जैसे लघुकथाकारों की रचनाओं का आस्वादन ले सकते हैं। अंततः ‘गुलाबी गलियां’ एक प्रशंसनीय संकलन है, जो अक्सर अंधेरे में रखे गए किरदारों की साहसिक खोज के लिए ध्यान देने योग्य है। सशक्त विचार और सार्थक कहन के माध्यम से यह संकलन एक ऐसे समुदाय का मानवीकरण करने में सफल होता है, जिसे अक्सर अमानवीय बना दिया जाता है। कुशल संपादन के लिए संपादक बधाई के पात्र हैं। 

गुलाबी गलियां (साझा लघुकथा संग्रह)
संपादक : सुरेश सौरभ
मूल्य : ₹249
प्रकाशन : श्वेतवर्णा, नई दिल्ली

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