- लगभग पांच दशक से चली आ रही है परंपरा
देवेन्द्रराज सुथार / बागरा. दुनियाभर में गुजरात के गरबा नृत्य की गमक देखने को मिलती है। नौ दिनों तक गरबा एवं डांडिया नृत्य का आयोजन न केवल भारतीय सांस्कृतिक परिदृश्य की जीवंतता को उजागर करता है, बल्कि अखंडता एवं समावेशिता के आलोक में हमारी सामाजिक रचनाधर्मिता का परिचय भी देता है। देवी दुर्गा को समर्पित यह सिर्फ एक नृत्य नहीं है, यह एक आध्यात्मिक आह्वान है एवं रीति-रिवाजों और परंपराओं के प्रति गहन आस्था की अभिव्यक्ति है, जिन्होंने सदियों से भारत का सृजन किया है।
इस परंपरा का बागरा कस्बे में लगभग बीते पांच दशक से निर्वाह किया जा रहा है। यहां नौ दिन तक स्थानीय पुरुष देवी-देवताओं की वेशभूषा धारण कर गरबा नृत्य की प्रस्तुति देते हैं। स्थानीय पुरुषों द्वारा नौदुर्गा का रूप धारण कर किया जाने वाला गरबा एवं डांडिया नृत्य काफी लोकप्रिय एवं आकर्षण का केंद्र है। इतना ही नहीं, नौ दिन तक स्थानीय पुरुष विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक नाटकों की प्रस्तुति देते भी देखे जाते हैं।
आयोजन कमेटी के विमलेश जैन ने बताया कि आसोज नवरात्री महोत्सव के नवमी के दिन मां अंबाजी गरबा मण्डल के तत्वावधान में विभिन्न वेशभूषा में गरबा नृत्य का आयोजन किया गया। वहीं रंग-बिरंगी रोशनी कर गरबा स्थल को सजाया गया। अंतिम दिन बाबा रामदेवजी के जीवन पर आधारित नाटक की प्रस्तुति दी गई। स्थानीय गायक हंसराज एंड पार्टी ने गरबा गीत के रूप में सुरीली छटा बिखेरी।
इस दौरान अशोक गांधी, दिलीप सुथार, कालू छिपा, कमलसिंह, राजू छिपा, भंवरलाल घांची, उत्तम सोनी, मीठालाल सुथार, जयंतीलाल राठौड, कमलेश सुथार, मेका छिपा, जयेश अग्रवाल, दिनेश माहेश्वरी, महेन्द्र छिपा, बुटासिंह, तोलसिंह राजपुरोहित, पहाड़सिंह राजपुरोहित, हस्तिमल सुथार, अमित सुथार, शंकर सुथार समेत आसपास से बड़ी संख्या में ग्रामीण मौजूद रहे।