- सांसद देवजी एम पटेल को टिकट मिलने के बाद दोनों धुर-विरोधी हुए एक होने का करा रहे हैं आभास
जालोर. विधानसभा चुनाव 2023 को लेकर भाजपा ने पहली सूची में सांचौर से प्रत्याशी की घोषणा करते ही यहां बगावती तेवर सामने आ गए। दरअसल, यहां पूर्व विधायक जीवाराम चौधरी व पूर्व प्रत्याशी दानाराम चौधरी में से एक को टिकट मिलने की अधिक उम्मीद थी, लेकिन पार्टी ने सभी समीकरणों को टटोलकर देखा तो सांसद देवजी एम पटेल उपयुक्त लगे, इस कारण पार्टी ने टिकट इन दोनों के बजाय देवजी पटेल को टिकट दे दिया। इसकी घोषणा होते ही अब तक राजनीतिक तौर पर धुर विरोधी माने जाते रहे जीवाराम व दानाराम चौधरी दोनों एक हो गए और पार्टी के प्रत्याशी देवजी पटेल की खिलाफत शुरू कर दी और बगावत भी ऐसी कि दोनों की स्थिति में संशय पैदा किये हुए हैं। संशय इस बात का कि दोनों बगावत करना तो चाह रहे हैं, लेकिन कंधा एक दूसरे का उपयोग करने की फिराक में है।
मन में जागी सांसद बनने की मंशा
वर्तमान सांसद देवजी पटेल को टिकट मिलने के बाद बगावत कर रहे दोनों दावेदार अपनी ताकत तो दिखाना चाह रहे हैं, लेकिन कंधा एक दूसरे का इस्तेमाल करना चाह रहे है। सूत्रों के मुताबिक अब दोनों के मन में सांसद बनने की मंशा जाग उठी है। विधानसभा में दोनों खुद न लड़कर साथी की पैरवी करने में जुटे हैं। यही वजह है कि जीवाराम कह रहे हैं कि बिजनेस कर रहे दानाराम को राजनीति में उतारकर पांच साल उसका घर धो दिया और अब धोखा कर दिया। इसे चुनाव लड़ना चाहिए, वहीं टिकट कटने के बाद दानाराम चौधरी कह रहे हैं कि जीवाराम वरिष्ठ हैं, उन्हें विधायक के लिए चुनाव लड़ना चाहिए। इसके लिए वो खुद खर्चा करने को तैयार हैं। ताकि स्वयं पर बागी होने का धब्बा न लगे और लोकसभा चुनाव में दांव खेल सके। अब देखना यह है कि दोनों दावेदारों की इस चाल में कौन उलझता है, यह तो दोनों की ओर से 30 अक्टूबर तक दिए गए अल्टीमेटम के बाद ही पता चल पाएगा।
दोनों दावेदारों के राजनीतिक करियर पर एक नजर…
जीवाराम चौधरी का राजनीतिक सफर
-1990 में निर्दलीय चुनाव लड़े, त्रिकोणीय संघर्ष में हार गए।
– वर्ष 1998 में भाजपा ने जीवाराम चौधरी को टिकट देकर सांचौर से मैदान में उतारा, लेकिन हीरालाल विश्नोई के सामने सीधे मुकाबले में हार गए।
– वर्ष 2003 में भाजपा ने फिर टिकट दिया, इस बार रिकॉर्डतोड़ करीब 45 हजार मतों से जीवाराम जीते।
– वर्ष 2008 में भाजपा ने जीवाराम का टिकट काटकर कानूनगो को मैदान में उतारा, जातीय समीकरण देख जीवाराम निर्दलीय लड़े और जीत गए।
– वर्ष 2013 में फिर भाजपा पार्टी ने जीवाराम को मैदान में उतारा, लेकिन मोदी लहर होने के बावजूद सीधे मुकाबले में कांग्रेस के सुखराम विश्नोई से करीब 24 हजार मतों से हार गए।
– 2018 में भाजपा ने जीवाराम का टिकट काटकर दानाराम को दे दिया, जीवाराम निर्दलीय खड़े हुए और करीब 49 हजार वोट लेकर खुद हारे और पार्टी प्रत्याशी दानाराम को भी हराने में सफल हुए।
– 2018 में पार्टी ने बगावत का कारण जीवाराम को निलंबित कर दिया, बाद में 2019 के लोकसभा चुनावों में जीवाराम को पुनः भाजपा पार्टी में शामिल कर दिया।
– वर्ष 2023 में पार्टी ने जीवाराम को फिर टिकट नहीं दिया, अब पार्टी प्रत्याशी के विरुद्ध नाराजगी जाहिर कर रहे हैं।
दानाराम चौधरी का राजनीतिक करियर
– वर्ष 2018 तक गुजरात में एक बिजनसमैन की भूमिका
– जीवाराम चौधरी के 2013 में सीधे मुकाबले में हारने के कारण नए युवा चेहरे की तलाश में पार्टी ने दानाराम को जोड़ा
– वर्ष 2018 में ही भाजपा ने दानाराम को प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा, लेकिन जीवाराम की बगावत का कारण हार झेलनी पड़ी
– वर्ष 2023 में पार्टी में प्रबल दावेदारों में दानाराम का नाम आगे था, सूची आउट होने पर जीवाराम के समर्थकों ने जयपुर में किया प्रदर्शन तो पार्टी ने निर्णय बदलकर टिकट देवजी के नाम कर दी
– अब दानाराम भी जीवाराम के साथ मिलकर नाराजगी जाहिर कर रहे हैं और जीवाराम को सहयोग करने की अपील कर रहे हैं
यह विधानसभा चुनाव सांचौर के लिए महत्वपूर्ण
इस बार के विधानसभा चुनाव सांचौर वासियों के लिए महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। दरअसल, सांचौर को नया जिला बनाया गया है। इस चुनाव के बाद आगामी पंचायतराज चुनाव के लिए सांचौर की जिला परिषद का भी गठन होना है। सांचौर जिले में नए सिरे से जिला परिषद व पंचायत समितियों के वार्डों का गठन होगा, इतना ही नहीं आगामी विधानसभा क्षेत्र का परिसीमन होने का भी समय इसी कार्यकाल में होगा। ऐसे में 2023 में बनने वाले विधायक की इन वार्डों के परिसीमन में महत्वपूर्ण भूमिका भी रहेगी।