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बगावत बड़ी या समर्पण … जानिए, सांचौर की राजनीति पर क्या बोले समर्पण करने वाले नेता

– सांचौर में टिकट घोषणा के बाद से ही शुरू हो गई बगावत
जालोर.
भाजपा की ओर से सांचौर में टिकट की घोषणा के बाद से ही दूसरे दावेदारों के बगावती सुर बाहर आ गए हैं। यूँ तो पार्टी में कई नेताओं ने दावेदारी जताई थी, लेकिन दो नेता पूर्व विधायक जीवाराम चौधरी व दानाराम चौधरी स्वयं को प्रबल दावेदार मान रहे थे। लेकिन पार्टी नेतृत्व ने दोनों के बजाय सांसद देवजी पटेल को टिकट थमा दी, इस कारण दोनों दावेदार एक होकर बगावती तेवर दिखा रहे हैं। जहां पिछले तीस साल से पार्टी से जुड़ने के बाद जीवाराम चौधरी का यह तीसरा मौका है, जब ये पार्टी को बगावती तेवर दिखाने जा रहे हैं, वहीं एक दावेदार दानाराम चौधरी है जिनको पार्टी ने केवल एक साल की मेनहत में 2018 में टिकट दे दी थी और हारने के कारण पांच साल बाद टिकट पुनः नहीं दी तो वो भी बगावत पर उतर गए हैं, लेकिन कुछ नेता ऐसे भी होते है तो संगठन को सर्वोपरि मानते है। जिनके लिए व्यक्ति की बजाय सिम्बल सबसे ऊपर होता है। आज हम इस खबर में उन नेताओं के बारे में भी बताएंगे, जिन्होंने अपने जीवन में राजनीति को सेवा मानते हुए पार्टी के प्रति समर्पण भावना का बेहतरीन उदाहरण पेश किया।
1998 में इच्छा जाहिर की, लेकिन अब तक नहीं मिली टिकट
रविंद्रसिंह बालावत मूलतः देबावास के रहने वाले है। ये युवावस्था में ही संघ के कार्यकर्ता के रूप में जुड़ गए। इन्होंने 1989 में एबीवीपी से जिलाध्यक्ष रहते हुए छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव जीता। उस समय उदय हो रही भाजपा पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में लोकसभा प्रत्याशी कैलाश मेघवाल के चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी भी सम्भाली।

Ravindra singh balawat

उसके बाद बालावत को भाजपा युवा मोर्चा का जिलाध्यक्ष भी बना दिया गया। 1998 में इन्होंने आहोर विधानसभा क्षेत्र से लगातार हार रही भाजपा को सीट जीतने के लिए आहोर से टिकट की मांग रखी। लेकिन पार्टी ने महेंद्र राजपुरोहित को टिकट थमा दी। पार्टी जीत नहीं पाई। उसके बाद वर्ष 2003, 2008, 2013, 2018 में भी रविंद्रसिंह बालावत ने अपनी इच्छा पार्टी के सामने रखी, लेकिन पार्टी ने इन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया। इसके बावजूद रविंद्रसिंह बालावत ने कभी भी बगावत करने की नहीं सोची। बालावत इस बार भी प्रबल दावेदारों में शामिल है। पार्टी ने बालावत की निष्ठा को देखते हुए पाली का संगठन प्रभारी तथा भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण का निदेशक भी बनाया है। बकौल रविंद्रसिंह बालावत का कहना है कि वे पार्टी विचारधारा से जुड़े हुए है। हम व्यक्ति विशेष के लिए काम नहीं करते, हमारे लिए सिम्बल ही सर्वोपरि है। वर्तमान में राजनीतिक सिद्धान्तों के स्वरूप में बदलाव आया है, लोग धनबल के बलबूते राजनीति करते है और बगावत करते है। जो एक संगठन के हित में सही नहीं है। सांचौर के घटनाक्रम पर उनका कहना है कि केंद्रीय नेतृत्व ने जो निर्णय किया है, कार्यकर्ताओं को भी उसका सम्मान रखना चाहिए।
ऐसा समर्पण जिन्होंने खुद का टिकट दूसरे को थमा दिया
जालोर से ही भाजपा के चार बार के विधायक रहे जोगेश्वर गर्ग का भी पार्टी के प्रति बेहतरीन समर्पण रहा है। एक बैंक में नौकरी करते हुए भेंसवाड़ा के युवा को भाजपा ने 1990 में जालोर एससी रिजर्व सीट से टिकट दे दी, गर्ग इसमें जीत गए। पार्टी ने उन्होंने मंत्री पद से नवाज दिया। इसी दौरान गर्ग को 1991 में जालोर लोकसभा क्षेत्र से भी भाजपा ने प्रत्याशी बनाया, लेकिन हार गए।

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jogeshwer garg, bjp mla with Atal biahri bajpeyi

फिर 1993 में दुबारा विधानसभा चुनाव में जालोर से विधायक बने। वे पार्टी में स्थापित नेता बन चुके थे, लेकिन 1998 में गर्ग ने हवा को देख स्वयं ने गणेशीराम मेघवाल का नाम आगे कर दिया, यह उनका समर्पण ही था कि किसी अन्य के लिए सीट छोड़ दी। यहां गणेशराम जीतने में कामयाब हुए। बाद में वर्ष 2003 में गर्ग को टिकट मिली और जीते, 2008 में उन्हें पहली हार मिली। वर्ष 2013 में मोदी लहर में उनकी टिकट काट दी, लेकिन गर्ग ने बगावत करना मुनासिब नहीं समझा। उनकी समर्पण भावना का ही नतीजा रहा कि 2018 में फिर से उन्हें जीत हासिल हुई। इसी समर्पण के कारण इस कार्यकाल में गर्ग को विधानसभा में भाजपा विधायक दल का मुख्य सचेतक बनाया गया। बकौल जोगेश्वर गर्ग का कहना है कि हम पार्टी के सिपाही है, टिकट घोषणा से पहले हर किसी को टिकट मांगने का अधिकार है, लेकिन शीर्ष नेतृत्व के निर्णय के बाद कोई किन्तु परन्तु नहीं होना चाहिए, सभी कार्यकर्ताओं को सिम्बल के साथ रहना चाहिए। सांचौर के घटनाक्रम के बारे में गर्ग का कहना है कि जल्द सभी की नाराजगी दूर करके पार्टी को जीत हासिल करवाएंगे।
दो बार जीत के बावजूद टिकट काट दिया उफ्फ तक नहीं किया
आहोर से दो बार भाजपा से विधायक रहने वाले शंकरसिंह राजपुरोहित की टिकट काटने के बाद भी उफ्फ तक नहीं किया। शंकरसिंह राजपुरोहित ने 1985 से लेकर 1998 तक मुंबई में कई क्षेत्रों में भाजपा के लिए कई पदों पर कार्य किया। 1993 में जालोर विधानसभा क्षेत्र के चुनाव प्रभारी बनकर आए।

Shankarsingh Rajpurohit

उसके बाद उन्हें 1996 में लोकसभा चुनाव में आहोर क्षेत्र का प्रभारी बनाया गया। इस चुनाव में पार्टी हार तो गई, लेकिन आहोर विधानसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी गेनाराम मेघवाल 180 वोट से आगे रहे थे। इसे देखते हुए पार्टी को उम्मीद लगी कि रायथल (ननिहाल) में जाए जन्मे शंकरसिंह राजपुरोहित आहोर से प्रत्याशी बनाया जाय। 2003 में शंकरसिंह आहोर से 1381 वोट से जीत गए। उसके बाद 2008 में उनकी इच्छा के विरुद्ध सुमेरपुर भेज दिया, वहां हार मिली। 2013 में फिर आहोर में जीत मिली और 2018 में फिर उनका टिकट पार्टी ने काट दिया, इसके बावजूद इन्होंने बगावत नहीं की। पार्टी ने इन्हें संगठन में बाड़मेर जिले का प्रभारी बनाकर मजबूती प्रदान करने की जिम्मेदारी दे दी। सांचौर के घटनाक्रम बकौल शंकरसिंह राजपुरोहित का कहना है कि हम पार्टी के स्वयंसेवक है, उनके आदेशों की अक्षर पालना करना ही हमारा ध्येय है, पार्टी से बड़ा व्यक्ति नहीं हो सकता। पार्टी हर व्यक्ति को मौका देती है।

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सांचौर से कौन कौन थे दावेदार
सांचौर विधानसभा क्षेत्र से इस बार दानाराम चौधरी व जीवाराम चौधरी के अलावा भगवानाराम माली, महेंद्र चौधरी, शीला विश्नोई ने भी दावेदारी की थी। लेकिन पार्टी ने टिकट सांसद देवजी पटेल को थमा दी, जिस कारण दानाराम व जीवाराम दोनों नाराज हो गए। जीवाराम चौधरी को पार्टी ने 1998, 2003 व 2013 में भाजपा ने टिकट दिया था। जिसमें जीवाराम केवल 2003 में पार्टी सिम्बल पर जीत सके। इसके बाद जीवाराम टिकट कटने के बाद बगावत कर निर्दलीय के रूप में 2008 में जीते। इसके पीछे मुख्य कारण यह रहा कि भाजपा ने मिलापचन्द कानूनगो को टिकट दे दी थी, जिस कारण जातीय समीकरण गड़बड़ा गया था। वर्ष 2013 में भाजपा ने पुनः जीवाराम को टिकट दिया, लेकिन मोदी लहर के बावजूद जीवाराम सुखराम विश्नोई से करीब 24 हजार वोटों से हार गए। इसे देखते हुए 2018 में पार्टी ने नए चेहरे दानाराम चौधरी को टिकट थमाई, यहां जीवाराम ने दूसरी बार बगावत कर भाजपा को हारने को मजबूर किया। इस कारण पार्टी ने इस बार देवजी पटेल को टिकट दे दी तो अब फिर अन्य दावेदारों की बगावत करवट लेने लगी है, अब देखना है कि पार्टी क्या फैसला लेती है।

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