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ख़त्म नहीं हो रहा बाल-विवाह का अभिशाप

पूजा गोस्वामी
रोलियाना, उत्तराखंड

हमारे देश में कुछ ऐसी सामाजिक बुराइयां हैं जिनके खिलाफ सख्त कानून बने हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद वह विधमान हैं. इनमें बाल विवाह प्रमुख है. भारत में प्रत्येक वर्ष 18 साल से कम उम्र की करीब 15 लाख लड़कियों की शादी हो जाती है, जिसके कारण भारत में दुनिया की सबसे अधिक बाल वधुओं की संख्या है, जो विश्व की कुल संख्या का तीसरा भाग है. 15 से 19 साल के उम्र की लगभग 16 प्रतिशत लड़कियां शादीशुदा हैं. हालांकि साल 2005-06 से 2015-16 के दौरान 18 साल से पहले शादी करने वाली लड़कियों की संख्या 47 प्रतिशत से घटकर 27 प्रतिशत हो गई है, परंतु यह अभी भी अधिक है. विशेषकर देश के ग्रामीण क्षेत्रों में इसका प्रतिशत अधिक है.

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देश के अन्य ग्रामीण क्षेत्रों की तरह उत्तराखंड के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ ब्लॉक का रोलियाना गांव भी इसका उदाहरण है. जहां बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयां आज भी अपनी जड़ें जमाए हुए है. हालांकि पहले की अपेक्षा यह कम हो रहे हैं लेकिन अभी भी पूरी तरह समाप्त नहीं हुए हैं. 575 लोगों की आबादी वाले इस गांव में उच्च और निम्न दोनों ही समुदायों के लोगों की संख्या है. वहीं साक्षरता दर की बात करें तो महिला और पुरुष साक्षरता दर में बहुत अधिक अंतर नहीं है. औसतन महिलाएं 12वीं और पुरुष स्नातक पास हैं. शिक्षा का यह रुझान दोनों ही समुदायों में समान रूप से देखने को मिलता है. हालांकि लड़कों की तुलना में इस गांव की लड़कियों में शिक्षा का रुझान अधिक है. शिक्षा के प्रति इसी रुझान ने लड़कियों को बाल विवाह के विरुद्ध जागरूक किया है. जिसके परिणाम लड़कियां खुद आगे बढ़ कर इस सामाजिक बुराई के खिलाफ आवाज़ उठा रही हैं और अपनी शादी को रुकवाने में भी सफल हो रही हैं. ख़ास बात यह है कि यहां उच्च जातियों की तुलना में अनूसूचित जाति में आज भी सबसे ज्यादा बाल विवाह होते हैं.

इस संबंध में अनुसूचित समुदाय से जुड़ी गांव की एक 17 वर्षीय किशोरी सपना का कहना है कि इसकी सबसे बड़ी वजह निम्न परिवारों की कमज़ोर आर्थिक स्थिति है. इसके अतिरिक्त ऐसे परिवारों में लड़कियों की संख्या अधिक होना भी है. अधिकतर निम्न परिवारों में लड़कों की चाहत में 5 से 6 लड़कियां जन्म ले लेती हैं. यही कारण है कि 12वीं पास होते ही लड़कियों की जल्दी शादी करवा दी जाती है. इसकी वजह से कई बार प्रतिभाशाली होने के बावजूद घर की आर्थिक तंगी और परिवार के दबाव के कारण लड़कियां पढ़ाई छोड़कर कम उम्र में ही विवाह करने के लिए मजबूर हो जाती हैं. गांव की एक अन्य किशोरी 16 वर्षीय मीरा का कहना है कि विवाह को करवाने वाले या इसकी तैयारियां करवाने वाले जैसे पंडित, दर्जी, दुकानदार, टेंट वाले, रसोईया आदि, यदि ऐसे घरों में जाने से मना कर दें और अपना सामान भेजने से इंकार कर दें तो इनके बिना विवाह संभव ही नहीं हो पाएगा और इस प्रकार न केवल बाल विवाह पर अंकुश लग जाएगा बल्कि इससे लड़कियों की जिंदगी बर्बाद होने से बच जाएगी.

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बाल विवाह का दंश झेल रही गांव की एक 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला लक्ष्मी का कहना है कि मेरी शादी 13 साल की उम्र में मुझसे 9 साल बड़े पुरुष से शादी करा दी गई थी. मैं न केवल शादी शब्द से अनजान थी बल्कि इसका अर्थ भी नहीं जानती थी. जिस उम्र में लड़कियां ज़िम्मेदारी से मुक्त केवल पढ़ाई और खेलती हैं उस उम्र में मुझे बहू के नाम पर घर के सारे कामों की ज़िम्मेदारियां सौंप दी गई थीं. 18 वर्ष की उम्र में मैं गर्भवती भी हो गई थी. गर्भावस्था में भी मेरे उपर पूरे घर की जिम्मेदारी होती थी. घर का सब काम मुझे करना होता था. जिस वजह से मेरा तीसरे महीने ही गर्भपात हो गया था. उस समय तो गांव में अस्पताल जैसी सुविधा भी दूर दूर तक नहीं थी. अप्रशिक्षित दाई के द्वारा ही घर में ही घरेलू नुस्खों से ही सफाई (गर्भपात) करवाया गया जिसका परिणाम मुझे आज तक झेलना पड़ रहा है. मेरा स्वास्थ्य हर तीसरे दिन खराब रहता है.

इस संबंध में गांव की आशा कार्यकर्ता रमा देवी भी स्वीकार करती हैं कि गांव में आज भी गैर कानूनी रूप से बाल विवाह होते हैं. जिसके कारण लड़कियों को स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों का सामना करना पड़ता है और उन्हें मानसिक तनाव से भी गुजरना पड़ता है. कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि कम उम्र में शादी होने और गर्भधारण के कारण लड़कियों की जान भी चली जाती है क्योंकि कम उम्र में गर्भवती होने से वह शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होती हैं जिससे उनकी जान जाने का सबसे बड़ा कारण होता है. वह बताती हैं कि कम उम्र में शादी होने के कारण लड़कियों के अंदर हार्मोन्स बदलाव होता है. जिससे उनके व्यवहार में भी बदलाव होता है और वह कमजोरी महसूस करती हैं. जिसके कारण वह घर का कोई काम नहीं कर पाती है. जिससे ससुराल वालों और आस पड़ोस वालों से उन्हें ताने सुनने पड़ते हैं. यही कारण है कि गर्भावस्था और गंभीर शारीरिक कमज़ोरियों के बावजूद उन्हें घर का सारा काम करना पड़ता है. परिणामस्वरूप कई बार जच्चा और बच्चा दोनों का जीवन खतरे में पड़ जाता है. रमा देवी कहती हैं कि बाल विवाह से न केवल लड़की का बचपना बल्कि उसकी शिक्षा भी छूट जाती है. जिससे वह शारीरिक और मानसिक हिंसा का शिकार होती है.

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गांव की युवा ग्राम प्रधान 29 वर्षीय शोभा देवी का कहना है कि बाल विवाह दूर करने के लिए लड़कियों को खुद जागरूक होना पड़ेगा, जब वह खुद बाल विवाह को ना बोलेंगी और इस बात पर अडिग रहेंगी कि हमें अभी शादी नहीं करनी है, फिर किसी की हिम्मत नहीं होगी कि उनकी शादी करवा सके. वहीं सामाजिक कार्यकर्ता नीलम ग्रेंडी का कहना है कि लोगों में जागरूकता की कमी के कारण ही बाल विवाह जैसी कुरीति ज़िंदा है. आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में छोटी छोटी लड़कियों की शादी कर दी जाती है. शादी करने का पहला कारण यह है कि लोगों की आर्थिक स्थिति सही नहीं होती है. वह अपनी जिम्मेदारी अपनी लड़कियों को बोझ समझकर दूसरों को सौंप देते हैं. जिसका दुष्परिणाम उन लड़कियों को भुगतनी पड़ती है. इस प्रकार उनका जीवन वहीं पर ही समाप्त हो जाता है.

बहरहाल, जागरूकता के कारण इन ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाह के विरुद्ध परिवर्तन आने लगा है और अधिक से अधिक अंकुश लगने लगा है. आगे भी बदलाव की उम्मीद है. आशा की जानी चाहिए कि जल्द ही ग्रामीण क्षेत्रों से भी यह बुराई जड़ से समाप्त हो जायेगी. जिससे लड़कियां भी अपनी जिंदगी, अपनी आजादी और अपने महत्वपूर्ण फैसले खुद ले सकें. (चरखा फीचर)

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