- जालोर एमसीएच में पिछले पांच साल में आठ बेटा-बेटी मिली
- बीती रात को भी मिली नवजात
जालोर. समाज में बदनामी के डर से अक्सर अवांछित या अनचाहे शिशु को या तो झड़ियों व नालों में फेंक देते थे, या फिर गर्भावस्था में ही मारकर गिरा देते थे, ऐसी स्थिति में कई बार शिशु की मौत के साथ साथ उसकी मां के जीवन को भी खतरा हो जाता था, लेकिन सरकार के “फेंको मत, हमें दो” उद्देश्य से शुरू किए गए पालनाघरों से ऐसे लोगों की सोच में बदलाव आने लगा है। इस पहल से कई नवजात मौत के मुंह में जाने से बच गए हैं। जालोर जिला मुख्यालय मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य केंद्र पर इसी प्रकार का पालना रखा हुआ है। जिसमें बीते पांच सालों में आठ बेटे-बेटियां मिली है। बीती रात करीब दस बजे भी एक बेटी मिली। जिसका उपचार चल रहा है।
कांटों से मिल रही निजात
दरअसल, पूर्व में कई बार अवांछित परिस्थितियों में गर्भ ठहरने के बाद कई लोग नवजात को जन्म देने के बाद कांटों में फेंक देते थे, जिस पर उन्हें या तो श्वान नोंचकर मार देते थे, या फिर लहूलुहान हालत में रोते बिलखते शिशु दम तोड़ देते थे, जो एक बड़ा अपराध है। साथ ही कई लोग बेटी होने पर उसे मार देते थे, लेकिन पालनाघर शुरू होने के बाद इसमें काफी हद तक बदलाव आया है। अब अनचाहे शिशु को मारने की बजाय उसे पालनाघर जैसी सुरक्षित जगह नसीब हो रही है। कोख मिलने के बाद मां भले न मिलती हो पर सुरक्षित जीवन जीने का एक स्थान जरूर मिल जाता है।
कोई गुजरात में पल रहा तो कोई दिल्ली में
बीते पांच वर्षों में जालोर एमसीएच के पालनाघर में आठ नवजात मिले हैं। जिसमें से चार बेटे व चार बेटियां है। उन्हें कोख देने वाली मां भले न मिल रही हो, लेकिन उनको बेहतर परिवार जरूर मिल चुके है, जो उन्हें गोद लेकर अपनापन दे रहे हैं। यहां मिली नवजात में कोई गुजरात में है तो कोई दिल्ली में जीवन जी रही है।
रात को दस बजे बजी घण्टी
एमसीएच के पालना गृह में रात दस बजे एक बार फिर घण्टी बजी। शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. मुकेश चौधरी ने डीडीटी को बताया कि मातृ एवं शिशु अस्पताल जालोर में रात को 10 बजे नवजात शिशु (बालिका) पालन गृह में मिली है। जिस पर सुबह बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष लीला राजपुरोहित, सदस्य रामसिंह चंपावत, सदस्य सरिता चौधरी ने नवजात को अपनी देखरेख एवं संरक्षण में लिया व स्वास्थ्य संबंधी जानकारी ली। नवजात शिशु कमजोर होने के कारण हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया एवं स्वस्थ होने पर आगे की प्रक्रिया की जाएगी।
चार बेटे व चार बेटियां पालनाघर में मिली
वर्ष 2017 में एमसीएच में पालनाघर शुरू किया गया था, वर्ष 2018 तक यहां तक कोई नहीं आया, हालांकि उस दौरान झाड़ियों में जरूर नवजात मिली थी। वर्ष 2019 में एक बेटा व 2020 में एक बेटी इस पालनाघर में मिली। उसके बाद वर्ष 2021 में दो बेटे व एक बेटी, 2022 में एक बेटा व एक बेटी तथा 2023 में अब तक एक बेटी इस पालना घर में सुरक्षित मिली है।