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कविता

बूंद-बूंद पानी का

कभी बूंद-बूंद बनकर गिरता है पानी,
कभी बर्फ बनकर गिरता है पानी,
टप टप टप टप करता है पानी,
झर झर झर झर बहता है पानी,
सबकी प्यास बुझाता है पानी,
पर्वतों से निकल कर,
नदियों में बहता है पानी,
अंत में सागर से मिल जाता है पानी,
बारिश बनकर लौट आता है पानी,
फिर बूंद बूंद बन कर गिर जाता है पानी।।

संजना गढ़िया
पोथिंग, उत्तराखंड

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