गांव की एक 29 वर्षीय गर्भवती महिला कमला कहती है कि हमारे गांव में अस्पताल की कोई सुविधा नहीं होने से हम जैसी गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत मुश्किल समय हो गया है. पल पल हमारे शरीर में बहुत से बदलाव आते हैं. हमें बहुत चिड़चिड़ापन महसूस होता है. थकान लगती है, पर हमें ये सब बर्दाश्त कर के अपने घर का काम पूरा करना पड़ता है, खेतों में जाकर काम करना पड़ता है. हालत 5 मिनट खड़े रहने के भी नहीं होते हैं, पर काम पूरा करना पड़ता है. ऐसे हाल में भी गांव से लगभग 27 किलोमीटर की दूरी तय करके प्रसव पीड़ा से जूझते हुए बैजनाथ या बागेश्वर के जिला अस्पताल जाना पड़ता है. उसमें भी हमारे गांव में गाड़ी की कोई सुविधा नहीं है. सरकार द्वारा खुशियों सवारी नाम से एक योजना चलाई गई थी, यह योजना आर्थिक रूप से कमज़ोर हम गर्भवती महिलाओं के लिए थी. लेकिन अब हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं है. घर घर खुशियों की तो बात ही नहीं कर सकते हैं. प्रसव पीड़ा का कष्ट जिंदगी और मौत से लड़ने के बराबर है और ऐसी हालत में हमें सरकार द्वारा दी गई सुविधा का लाभ नहीं मिल पाता है तो कष्ट दोगुना हो जाता है.
गांव की एक बुजुर्ग महिला बचुली देवी कहती हैं कि आज मैं उम्र के जिस पड़ाव में हूं, चलने फिरने से अक्षम हूं, ऐसे समय में हमारे लिए ऐसी कोई भी सुविधा का उपलब्ध नहीं होना तकलीफ को और भी अधिक बढ़ा देता है. वह कहती हैं कि हमारे समय में तो अगर कोई औरत जंगल में काम कर रही होती थी तो उसे वहीं प्रसव पीड़ा उठती थी और बच्चे का जन्म हो जाया करता था. लेकिन आज वह समय नहीं रहा है. वर्तमान में, लड़कियों और औरतों के शरीर में पहले जैसी ताकत नहीं है. पहले का खानपान अलग हुआ करता था, पर अब उस तरह का खानपान नहीं रहा है. अब दुनिया में ऐसी ऐसी बीमारियां आ गई हैं कि जिसका अंदाजा लगाना मुश्किल हो गया है. अब बच्चों के जन्म के समय कई टीके लगाए जाते हैं, जो हमारे समय में नहीं लगाए जाते थे. इसलिए महिलाओं को अस्पताल लेकर जाना जरूरी हो गया है. जिसके लिए एम्बुलेंस की सुविधा ज़रूरी हो गई है.
सलानी की ग्राम प्रधान कुमारी चंपा भी कहती हैं कि हमारे गांव के आसपास कहीं भी खुशियो की सवारी नहीं आती है. मैंने अपने स्तर पर कई बार प्रयास भी किया है, ताकि गांव की गर्भवती महिलाओं को यह सुविधा प्राप्त हो सके, लेकिन अभी हम इसमें असफल रहे हैं. फिर भी मेरा पूरा प्रयास रहेगा कि यह सुविधा अपने गांव में फिर से शुरू करा सकूं. वहीं सामाजिक कार्यकर्ता नीलम ग्रैंडी का कहना है कि जब सरकार कोई सुविधा देती है, तो हर किसी को इसे प्राप्त करने का पूरा अधिकार होता है. गांव की अधिकतर गर्भवती महिलाएं बहुत कमज़ोर आर्थिक परिवार से होती हैं, जिनके घर आमदनी नाममात्र है, ऐसे में वह हर माह चेकअप के लिए निजी वाहन की व्यवस्था करने में असमर्थ होते हैं. इसलिए सरकार ने यह सुविधा दूरदराज की गरीब महिलाओं के लिए उपलब्ध कराई थी. इसमें कोई पैसा भी नहीं लगता था. यह सरकार द्वारा दी गई फ्री सुविधा थी जो बहुत ही अच्छी और कारगर थी. हालांकि ज़िले में एक बार फिर से यह सुविधा शुरू होने की बात कही गई है, लेकिन सलानी गांव के लोगों को आज भी खुशियों की सवारी का इंतज़ार है. (चरखा फीचर)